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क्षितिज तक लहरा उठा
सरसों का
पीताम्बर-सा
धरा पुलकित हो उठी
झूम उठे
सब दिग्-दिगन्त ,
गुनगुनाता गीत नव
भ्रमर -संग
आया वसन्त ।
खेलें आँखमिचौलीचंचल तितलीसहेलियाँ ,फूलों को चूमकरबूझती हैंज्यों पहेलियाँ,धरा का कण-कण रँगालहरायासागर अनन्त।'''[03-02-2011]'''
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