गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
अधर-सुगन्ध / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
428 bytes added
,
16:28, 22 दिसम्बर 2022
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।
डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।
अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
</poem>
वीरबाला
4,866
edits