Changes

{{KKCatNavgeet}}
<poem>
बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।
डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।
 
अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
</poem>