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अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और / फ़राज़
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16:24, 11 नवम्बर 2008
'''कू-ए-मलामत''' - ऐसी गली, जहाँ व्यंग्य किया जाता हो<br>
'''खुर्शीद''' - सूर्य, '''रंज''' - तकलीफ़, '''गमतलब'''- दुख पसन्द करने वाले<br>
'''तर्के-तअल्लुक''' -
व्श्ति
रिश्ता
टूटना( यहाँ संवाद हीनता से मतलब है)<br>
RANJANJAIN
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