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04:55, 25 दिसम्बर 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
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<poem>
मन को जो राहत दे दें बातों में अफसाने रख
नोटों की गड्डी के सँग जेबों में कुछ सिक्के रख
ऊबड़-खाबड़ रस्ता है ठोकर भी लग सकती है
बेशक सर को ऊँचा रख पर नज़रों को नीचे रख
ऊँचा उड़ना है तो सुन ऐसे जीना पड़ता है
आँखों में सपने तो हों नीदों को पैताने रख
ख़ुशियों में तेरी हँस लें ग़म में आँसू पोछें जो
बेगानी इस दुनिया में थोड़े ऐसे अपने रख
सबको ले चल पायें सँग ऐसा करना मुश्किल है
जिन रिश्तों में जीवन हो, जीवन में वो रिश्ते रख
चिंगारी जो भीतर है उसको मत दफ़ना भीतर
आँखों में कुछ शोले रख होठों पर अंगारे रख
</poem>