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बीती कितनी रातें, सोने के दिनमतवाले छिन, सब तेरे बिन,
इसे कोई न जाने।
आई कितनी सुधियाँ, उलझी अलकेंबोझिल पलकें, आँसू ढलके,
अधर दे रहे ताने।
हिचकी बुनती सपने, पथ है निर्जनसोए हैं बन, भारी है मन,
दर्द लगा लहराने।
तन की मन से, कितनी कैसी दूरीकब हो पूरी, साँस अधूरी
सौ-सौ गढ़े बहाने।
बिछुड़ गए सब साथी, पथ पर चलकररूप बदलकर, हमको छलकर
सब जाने- पहचाने।
'''-0-[ 19-9-85:सैनिक समाचार-20-4-86]'''
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