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शुक्रिया कहना / सपना भट्ट

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<poem>
डूबते सूरज की जानिब उछालना
किसी अतृप्त चाहना के पुर्ज़ों को
ग़लत पते पर लिखे
ख़त के जवाब का
बेतरह इंतिज़ार करना

आत्मा को तापना
कामना के सुनहरे हो जाने तक
देह को उतारकर लिबास की तरह
कुछ देर
अपने पसन्दीदा आले में सुस्ताने देना

याद को खींचना
सिगरेट के धुएँ की तरह
हलक़ को जलने देना
आँखों की कोरों में प्रार्थना को पकने देना

रूठकर जाना पतझड़ की तरह
नए गुलाबी वसन्त की तरह लौट आना
तितली के कोमल पंखों की तरह
मेरी देह में उगना

मेरे पैरों में डालकर ताबीज़ी धागे
ले चलना
मृत्यु के अनंत उत्सव तक मुझे

तुम मेरे लिए इतना करना
मेरा हाथ थामकर
अकेलेपन से उकताए ईश्वर की
पेशानी चूमकर उसे शुक्रिया कहना ।
</poem>
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