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|रचनाकार=चार्ल्स बुकोवस्की
|अनुवादक= यादवेन्द्र
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<poem>
तुम्हारी ज़ि्न्दगी किसी और की नहीं
तुम्हारी है

इसे कभी उदासी घेरे
तो भी
किसी को यूँ ही थमा नहीं देना

हमेशा चौकस रहो
मुक्ति का रास्ता ज़रूर होगा
कहीं न कहीं रोशनी तो होगी
तुम्हें दिख जाएगी

मुमकिन है उसमें उतनी आभा न हो
लेकिन जितनी भी होगी
अन्धियारे को हरा तो देगी ही ।
</poem>
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