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|रचनाकार=रैनेर मरिया रिल्के
|अनुवादक=शुचि मिश्रा
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<poem>
वृद्ध होते जा रहे संसार के सम्राट
नहीं कोई उत्तराधिकारी; नहीं ठाट
पुत्र चल बसे सब बड़े होने से पूर्व
बेटियाँ छोड़ गईं सब अनमन
जनता के नाम मुकुट-सिंहासन

सोने के कण में टूट जाती है जनता
उनका नायक मशीन बनाता आग में गलाकर
जो भुनभुनाती आहट में निर्देश देती
लेकिन साथ नहीं देता उनका मुकद्दर
वे भाग जाना चाहती पहिए-ख़जाना छोड़कर

कारख़ानों और रोज़नदारी की पेटी के परे
वे सब कुछ; जो देते हैं छोटी ज़िन्दगी
पहाड़ों की रंध्रों में वे लौट जाना चाहती
जो फिर से मुंद जाती हैं उनके जाते ही !

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा'''

'''लीजिए अब इसी कविता को अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''
Reiner Maria Rilke

</poem>
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