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{{KKRachna
|रचनाकार= येव्गेनी रिज़निचेंका
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
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<poem>
मैं उसे पंछी कहूँगा
जब वह उड़ जाएगी —
पत्थर कहूँगा मैं उसे
जब वो गिर जाएगी —

मैं ही कहूँगा उससे यह बात,
कहा था न मैंने
अब तुम जानो ।

— हाँ, जानती हूँ, — वो कहेगी
और साँप बन जाएगी ।
शायद ही मैं पीछे हट पाऊँगा,
और चिल्ला पाऊँगा — हाँ :
मन में शिकायत होगी, कड़वाहट होगी, दिल दहल गया होगा .. —
मैं भर पाया इस औरत से, बहुत हुआ।

मौत के दिन तक
चलता रहेगा मेरा रोना-धोना
सुनाई देती रहेंगी मेरी चीख़ें ।
पर क्या मैं सुन पाऊँगा
उनकी गूँज कभी ।

'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''


'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Евгений Резниченко
* * *
Птицей её назову.
И когда улетит —
Камнем её назову.
И когда упадёт —
Я же, скажу, говорил,
Знай же теперь.
— Знаю, — ответит она,
И станет змеей.
Вряд ли успею отпрянуть,
Выкрикнуть — да:
Жалобио, горько, истшно... —
Хватит с неё.
Будет до Судного дня
криком моим.
Только успеть бы услышать
Эхо его.

1991
</poem>
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