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निगाहों दिल का अफ़साना करीबे इख्तिताम आया ।
हमें अब इससे क्या आया शहर या वक्तेशाम आया ।।
ज़बाने इश्क़ पर एक चीख़ बनकर तेरा नाम आया,
ख़िरद की मंजिलें तय हो चुकी दिल का मुकाम आया ।
न जाने कितनी शम्मे गुल हुई कितने बुझे तारे,
तब एक खुर्शीद इतराता हुआ बालाये बाम आया ।
इसे आँसू न कह एक याद अय्यामें गुलिश्ताँ है,
मेरी उम्रे खाँ को उम्रे रफ़्ता का सलाम आया ।
बेरहमन आबे गंगा शैख कौशर ले उड़ा उससे,
तेरे होठों को जब छूता हुआ मुल्ला का जाम आया |
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