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हलफ़नामा / कुमार कृष्ण

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|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
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<poem>
दोस्तो-
मैं हूँ दादा-दादी का अंतिम शब्दकोश
मरणासन्न बोलियों की आखिरी किताब
कभी नहीं पढ़ी जाएगी मेरे बाद
जब लोग पढ़ रहे हों शोभा डे
सुन रहे हों बॉब मार्ले
तब कौन पढ़ेगा धरती पर अमर बेल
मैं अपने गाँव में-
कविता का अंतिम बादशाह हूँ
मैं हूँ अपने परिवार का-
अंतिम हल, अंतिम हेंगा
अंतिम कुदाल, अंतिम हंसुआ
लकड़ी के चूल्हे पर पकती अंतिम रोटी हूँ
मैं हूँ अंतिम खेत
पुरखों का पसीना इस धरती पर
मैं हूँ अपने परिवार की-
पूजा की आखिरी घण्टी
अंतिम मंत्र, अंतिम यज्ञोपवीत, अंतिम लालटेन
त्यौहारों पर पकता अंतिम स्वाद मैं हूँ
मैं हूँ वर्णमाला की आखिरी तख्ती
गणित सीखने की आखिरी स्लेट
मैं कविता की आखिरी चिट्ठी हूँ
गाँव की धरती पर
सुबह की प्रतीक्षा में-
राख में छुपी अंतिम आग हूँ।
</poem>