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17:16, 22 फ़रवरी 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार कृष्ण
|अनुवादक=
|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शब्द ने सपना देखा
उसे किसी जादूगर ने कविता में बदल दिया है
उसे लगा दिए हैं बड़े-बड़े पंख
शब्द उड़ता हुआ जंगल की ओर गया
उसने देखा-
जोर-जोर से रो रहे हैं तमाम पेड़
शब्द देर तक सुनता रहा रोने की आवाज
पेड़ उस नदी के लिए रो रहे थे
जिसे देख-देख कर वे जीते रहे आज तक
शब्द उड़ता हुआ एक शहर की ओर गया
उसने देखा-
परेशान हैं बहुत सारे लोग
वे रौंदे देना चाहते थे तमाम दुःख
विदेशी जूतों के साथ
शब्द उड़ता हुआ पहुँचा एक गाँव में
उसने देखा-
उसकी शक्ल के अनेक शब्द
लड़ रहे हैं किसी राजा के साथ
शब्द देखता रहा बहुत देर तक
उस लड़ाई को
लगातार हारते जा रहे थे शब्द
वह खुद भी शामिल हो गया
उन शब्दों के साथ
एक लम्बी लड़ाई में।
</poem>