Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश सलिल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश सलिल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उभर-उभरकर आ रहे हैं
मन में अनगिन चित्र
बतलाना मुश्किल बहुत
कैसे हैं वे, मित्र !

उनमें है नदी की कलकल
चाँदी-सी लहरों की झलमल
कौंध और नावों का नर्तन
जल पर पालों का आवर्तन

हुए स्वप्नवत् आजकल
वे सब के सब चित्र
नदी भूमिगत हो गई
स्मृति बची है, मित्र !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits