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तुम्हारे हाथ / नाज़िम हिक़मत

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<poem>
तुम्हारे हाथ
पत्थरों की तरह संगीन हैं
जेल में गाए गए गीतों की तरह उदास हैं
बोझ ढोने वाले पशुओं की तरह सख़्त हैं

तुम्हारे हाथ
भूखे बच्चों के तमतमाए चेहरों की तरह हैं

तुम्हारे हाथ
मधुमक्खियों की तरह दक्ष और उद्योगशील हैं
उन स्तनों की तरह भारी हैं
जिनमें से दूध छलक रहा होता है
कुदरत की तरह जुझारू हैं
अपनी खुरदुरी खाल के भीतर वो
दोस्ती की मुलायमत छिपाए होते हैं
यह दुनिया बैलों के सींग पर नहीं टिकी हुई है
यह दुनिया तुम्हारे हाथों पर नाच रही होती है

और
आह ! मेरे लोगो !
आह ! मेरे लोगो !
वो तुम्हें झूठ की ख़ुराक देते ही रहते हैं
जब तुम भुखमरी में निढाल होते हो
जब तुम्हें रोटी और गोश्त की ज़रूरत होती है
सफ़ेद मेज़पोश से ढकी मेज़ पर
एक बार भी मन भर के खाए बग़ैर
छोड़ देते हो तुम यह दुनियाँओं
और इस दुनिया के फलों से लदे वृक्षों को


</poem>
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