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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार कृष्ण
|अनुवादक=
|संग्रह=धरती पर अमर बेल / कुमार कृष्ण
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<poem>
जिसने अपनों को खोया
उनके लिए मैं बस गाली हूँ
वे कहेंगे मुझे सबसे बुरा वक्त
थोड़ा उसके बारे में भी सोचना-
मैं आया था हरियाली लौटाने
जीवन का असली पाठ पढ़ाने
रिश्तों की परिभाषा बदलने
मैं जानता हूँ-
आज मेरा अंतिम दिन है दीवार पर
भूल जाएँगे आने वाले कल मेरी सीख
गायब होने लगेंगी फिर से नदियाँ
भूलने लगेंगे पक्षी अपने गीत
दौड़ने लगेंगे जंगल की ओर कुल्हाड़ियों के पाँव
शायद मैं बचा रहूँ थोड़ा बहुत-
सड़क पर ठिठुरते गेहूँ के दोनों में
साइकिल के पैडल पर
चिउड़े की पोटली में
ट्रेक्टर ट्रॉली के नीचे दुबका हुआ
बचा रहूँ आँसू के नमक में
तुम भूल जाओगे जीवन की भाषा
जिसे सिखाने में बिता दिए मैंने बारह महीने
कहीं छुपा कर रखना-
दादी की तरह मेरी कुछ बातें
सुखमय हो तुम्हारा आने वाला कल
</poem>