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मौन की भाषा / कल्पना मिश्रा

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<poem>
कुछ तो अनकहा रहने दो
कुछ तो हो जो सिर्फ तेरे मेरे दरमियाँ हो
कुछ तो छुपा रहने दो
कुछ तो दबा रहने दो
कभी तो खामोशियों को पढ़ने का अवसर दो
कभी तो आँखो की भाषा पढ़ना भी सीखो
अब बोलने का जी नहीं करता,
चलो मन की बातों को समझना सीखें ।।
</poem>