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|रचनाकार=मोहम्मद मूसा खान अशान्त
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<poem>
यूँ दिल की धड़कनो को बढ़ाया न कीजिए
ख्वाबों में आके नीन्दे उड़ाया न कीजिए

जब हम सफ़र बने हो तो हमराह भी चलें
हाथों मे हाथ देके छुड़ाया न कीजिए

दुनिया मज़ाक लाख उड़ाए गिला नही
लेकिन मज़ाक आप उड़ाया न कीजिए

ऐ हमसुखन बताएँ हैं नाशाद किसलिए
यूँ दर्दे दिल को हमसे छु पाया न कीजिए

मूसा है सिर्फ़ ज़िंदा तो बस आपके लिए
यूँ आँख अब तो उससे चुराया न कीजिए
</poem>