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|रचनाकार=मोहम्मद मूसा खान अशान्त
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<poem>
अब उनकी बेरुख़ी का न शिकवा करेंगे हम
लेकिन ये सच है उनको ही चाहा करेंगे हम

जाएँगे वो हमारी गली से गुज़र के जब
बेबस निगाह से उन्हें देखा करेंगे हम

तन्हाइयो में यद जब उनकी सताएगी
दिलऔर ज़िगर को थाम को तड़पा करेंगे हम

करते नही कुबूल मेरी बन्दगी तो क्या
बस उनके नक़्शे पा पे ही सज्दा करेंगे हम

मूसा अगर वो यारे हंसी मेहरबान हो
जीने की थोड़ी और तमन्ना करेंगे हम
</poem>