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21:21, 14 मार्च 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महमूद दरवेश
|संग्रह=
}}
<poem>
दूऽऽऽर,
आख़िर कितना दूर है ?
वहाँ
पहुँचने के
कितने रास्ते हैं ?
हम चलते हैं,
चलते जाते हैं
मायनों की तरफ़
पर कभी नहीं पहुँचते..!
''' अँग्रेज़ी से अनुवाद : दुष्यन्त'''
</poem>