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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
दर्द-ए-दिल की दवा करे कोई,
काश मुझसे वफ़ा करे कोई ।

बाब-ए-दिल बंद है जो मुद्दत से,
आये और इसको वा करे कोई ।

उम्र महरूमियों में गुज़री जब,
मर के जन्नत का क्या करे कोई ।

इल्तिजा एक भी नहीं मानी,
जाओ ! अब क्या गिला करे कोई ।

सबको मिलना है जब मुक़द्दर का,
क्यों किसी से दग़ा करे कोई ।

अब सुकूं में सुकूं नहीं हासिल,
घाव फिर से हरा करे कोई ।

कोशिशें तो तमाम कर लीं 'असर',
मेरे हक़ में दुआ करे कोई ।
</poem>