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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
मुझको आवाज़ देकर जगाता है वो,
रहगुज़र पुरख़तर है बताता है वो।

ऐसा रिश्ता मेरे उसके है दर्मियां,
जो मैं ज़िद भी करूँ मान जाता है वो।

भूखा सो जाऊँ मैं तो उठा कर मुझे,
अपने हाथों से खाना खिलाता है वो ।

बाँध पाया न कुछ मैं सफ़र के लिए,
हौसला मेरा फिर भी बढ़ाता है वो।

मेरे घर भेजता है कभी रहमतें,
और कभी अपने दर पर बुलाता है वो।

मैं तो मतलब निकलते ही भूला उसे,
राह मा'क़ूल फिर भी दिखाता है वो।

रंग सपनों के उड़ने लगें जब 'असर',
मेरे सपनों को ख़ुद ही सजाता है वो।
</poem>