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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर'
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<poem>
राजा मज़े में है न रिआया मज़े में है ।
जो है तेरी पनाह में बंदा मज़े में है ।।

हो कर जुदा भटकता फिरा जो यहाँ-वहाँ ,
दरिया से मिल के आज वो क़तरा मज़े में है ।

दुनिया की साज़िशों से परेशान था बहुत,
दिल मेरा अब फ़क़ीर सा तनहा मज़े में है ।

महसूस जब किया कि ख़ुदा ही है नाख़ुदा,
हम क्या हमारे साथ सफ़ीना मज़े में है ।

बादल की मिन्नतों से मयस्सर न होगा कुछ,
आते ही इस ख़याल के सहरा मज़े में है ।

ग़ाफ़िल ही रहने देना उसे असलियत से तुम,
पूछे जो मेरा हाल तो कहना मज़े में है ।

पहुँचा के सबको मंज़िल-ए-मक़सूद पर 'असर',
अपनी जगह पे रह के भी रस्ता मज़े में है ।
</poem>