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मंथन / प्रताप नारायण सिंह

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|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
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|संग्रह=नवगीत/ प्रताप नारायण सिंह
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<poem>
बिलोड़ लेने दो समय को
हमारा जीवन-घट;
अलग हो जाने दो
एक एक अवयव।
भँवर की तरंगों पर झूलता हुआ
जो श्रृंग तक पहुँचेगा,
मंथन रुकने पर
वही हमारे द्रव्य की पहचान बनेगा।
</poem>