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|रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल
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<poem>
१)
नदी के बीच बने छोटे एकांत टीले
असल में संवाद के मध्य उभर आई
अहम की चुप्पियाँ होती हैं
जो दिखने में दूर से
जितनी खूबसूरत लगती हैं
उतना ही कष्टदायक होता है उनमें रुकना!

२)
प्रेम के संवाद में
छूटे बातों के सिरे
दरअसल वो नावें हैं
जो तट के किनारे लगने की
राह देख रही हैं!

३)
किनारे उल्लास मनाते हैं
नदी के बहाव का
नदियों के प्रवाह के अस्तित्व का महत्व
नावों से अधिक
किनारों को पता होता है!

४)
मन का अहंकार और असहमति
असल में गहरी नदी में विलीन
उन बड़े-बड़े पत्थरों की भांति होते हैं
जो नदी का प्रवाह
रोकने या बदलने के प्रयास में
डूब जाते हैं
परन्तु संवाद की नदी का जलस्तर घटते ही
अस्तित्व में आ जाते हैं!
</poem>
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