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तुरहियाँ / किऑक थाकेल / अनिल जनविजय
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10:59, 13 मई 2023
पेड़ों के झुरमुट में अलाव के घेरे में, सदियों पुराने दुख-सुख बतलाएँ ।
अन्धेरे की काली दीवार पर जहाँ, नाचती दिख रही हैं नर्तक परछाइयाँ
कहकहे हैं, पागलपन है,
लाल
सुर्ख़
पताकाओं के नीचे बज रही हैं तुरहियाँ ।
अनिल जनविजय
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