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{{KKRachna
|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=मोहन थपलियाल
|संग्रह=इकहत्तर कविताएँ और तीस छोटी कहानियाँ / बैर्तोल्त ब्रेष्त / मोहन थपलियाल
}}
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<poem>
और मैं
हमेशा सोचता था —

एकदम
सीधे-सादे शब्द ही
पर्याप्त होने चाहिए

मैं जब कहूँ
कि चीज़ों की
असलियत क्या है
प्रत्येक का दिल
छलनी हो जाना चाहिए

कि धँस जाओगे
मिट्टी में एक दिन
यदि ख़ुद नहीं खड़े हुए तुम
सचमुच,
तुम देखना एक दिन ।

(1953-56)

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल'''
</poem>
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