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07:06, 30 मई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अदनान कफ़ील दरवेश
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'''विहाग वैभव के लिए'''
नई सदी में हत्यारे
नए हथियारों से लैस थे
उन्होंने देवालयों से ईश्वर चुराए
और उन्हें धारदार हथियारों में बदल दिया
उन्होंने सुबह-सुबह बाग़ से फूल चुने
और उन्हें हथियारों में बदल दिया
उन्होंने शहरों के नक़्शे उठाए
और पवित्र रंगों को ढुलकाया
और आश्चर्य !
कि नक़्शा गलकर
ख़ून में फूल गया
इस तरह रंगों को भी उन्होंने हथियार में बदला
उन्होंने नृशंस हत्याएँ कीं
और उसे कला की संज्ञा दी
और सभ्यता की उपलब्धियों में गिना
वे कलावंतों की तरह आए
वे उद्धारकों की तरह आए
वे महामानवों की तरह आए
उन्होंने भविष्य को एक फूल के रूपक में बाँधा
उन्होंने देश को भी
एक नाज़ुक फूल की उपमा से नवाज़ा
और आदमियों को खोखला कर
बारूद भर दिया
उन्होंने उनके फूल जैसे हाथ-पाँव से
हथियारों का काम लिया
इस तरह नई सदी में हत्यारों ने
सौन्दर्य को भी हथियार की तरह बरता
इसलिए जब-जब बसन्त ने दस्तक दी
मैं घबराया
उन्होंने जब-जब किसी फूल को छुआ
मेरी रूह काँप गई ।
</poem>
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