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10:56, 21 जून 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जय गोस्वामी
|अनुवादक=जयश्री पुरवार
|संग्रह=
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<poem>
उसका नाम है हमीदा । बाज़ार का झोला ढो देती है ।
कहने से घर तक भी पहुँचा देती है ।
कोई उसे नाम से नहीं बुलाता ।
सब्ज़ीवाले, मछलीवाले कहते हैं :
‘उस काली लड़की को दीजिए, वह पहुँचा देगी ।’
हमारी गली में काबेरी के पीछे - पीछे
छोटे - बड़े, दो थैले हाथ में लेकर आ रही है हमीदा ....
छोटे थैले में है चाँद । बड़ेवाले में है घूमती हुई पृथ्वी ।
बड़ेवाले में नदी है, पेड़ है, समुद्र है, पर्वत, मरुस्थल, बस्ती और नगर हैं,
करोड़ों चींटियाँ हैं या फिर आदमी ?
माचिस की डिब्बियों की तरह सैकड़ों मकान
गेंद के साथ ही घूम रहे हैं ।
थैला फाड़ बाहर आकर
चाँद चमक रहा है आसमान में ।
महाशून्य को रौंदते हुए
वह काली लड़की चलती जा रही है ....
देखो - देखो ! उसके पैरों के नीचे
लक्ष - लक्ष आलोकों का नर्तन !
'''जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित'''
</poem>