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|रचनाकार=कमला दास
|अनुवादक=रंजना मिश्रा
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<poem>
एक घर है अब बहुत दूर जहाँ कभी
मैंने प्यार पाया था ....
वह स्त्री अब मृत है

घर चुप्पी में डूब गया, किताबों के बीच साँप
घूमने लगे, मैं तब बहुत छोटी थी पढ़ने के लिए
और मेरा ख़ून चाँद की तरह ठण्डा हो गया
कई बार मैं वहाँ जाने की सोचती हूँ
उन अन्धी खिड़कियों की आँखों से झाँकने
या ठहरी हुए हवाओं को सुनने की ख़ातिर
या फिर आदिम निराशा में,
बाहों में अन्धेरा भर यहाँ ले आने को ताकि
वह मेरे शयनकक्ष के दरवाज़े के पीछे
विचारमग्न कुत्ते की तरह लेटा रहे

तुम विश्वास नहीं करोगे, प्रिय !
क्या तुम विश्वास करोगे कि मैं कभी ऐसे घर में रहती थी
और गर्व करती थी,
मुझे प्यार किया जाता था ....

मैं जो अपनी राह
भूल गई हूँ और अब अजनबियों के द्वार पर
प्रेम की याचना करती हूँ
थोड़े से प्रेम के बदले ?

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र'''
</poem>
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