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|रचनाकार=कमला दास
|अनुवादक=रंजना मिश्रा
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<poem>
तुमने अबाबील को पालतू बनाने की सोची
अपने प्रेम की लम्बी गर्मियों में जकड़े रखने के लिए
ताकि वह न सिर्फ़ अनगढ़ मौसमों को,
उस घर को जो वह पीछे छोड़ आई है,
बल्कि अपने स्वभाव को,
उड़ान की लालसा और आकाश की
अनन्त पगडण्डियों को भी भूल जाए

एक और मर्द के बारे में जानने के लिए
मैं तुम तक नहीं आई थी
अपितु यह जानने कि मैं क्या थी
और यह जानकर पल्लवित होने के
लिए आई थी
पर तुमने मुझे जो सिखाया, वह तुम्हारे बारे था,
तुम मेरे शरीर के जवाब से, उसके मौसमों से,
इसकी सामान्य तुच्छ सी ऐंठन से ख़ुश हुए
और मेरा मुँह अपने लार से भर दिया

तुमने खुद को मेरे शरीर के हर हिस्से में बहा दिया
तुमने मेरी तुच्छ सी भूख को अपने कड़वे मीठे रस से संलेपित कर दिया,
तुमने मुझे पत्नी कहा
मैंने तुम्हारी चाय में सैकरीन मिलाना सीखा और सही समय पर तुम्हें
विटामिन देना भी,
तुम्हारे विशाल अहम के समक्ष कायर बनते हुए
मैंने जादुई रोटी का एक टुकड़ा चखा और बौनी हो गई
मैं अपनी इच्छा और अपने कारण भूल गई
तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मैंने असम्बद्ध बुदबुदाहट से दिए

गर्मियां नीरस होने लगीं,
मुझे पतझड़ की वे सूखी हवाएँ याद हैं
और सूखे पत्तों के जलने का धुआँ भी

तुम्हारा कमरा हमेशा कृत्रिम रौशनी से चमकता है
तुम्हारी खिड़कियाँ हमेशा बन्द,
एयर कण्डीशनर भी कितनी कम मदद करता है
हर ओर तुम्हारी साँसों की पुरुष गन्ध, फूलदान के कटे फूल
इनसानी पसीने की महक से तरबतर हैं
कहीं संगीत नहीं, कहीं कोई नृत्य नहीं है, मेरा दिमाग एक पुराना
खिलौनाघर है जिसकी सारी बत्तियाँ बुझी हुई हैं

ताक़तवर इनसान की तरक़ीब हमेशा एक सी होती है
वह अपना प्यार हमेशा घातक मात्र में देता है
कि प्यार पानी के किनारे ख़ुद से डरा अकेला शापग्रस्त प्रेत है
जिसे अपना अन्त स्वयं ढूंढ़ना होता है
निष्कलुष पूरी आज़ादी उन शीशों को तोड़ने की
दयालु रात जिसके पानी को पोंछ दे

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रंजना मिश्र'''
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