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कैसे लिखूँ / अनीता सैनी

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प्रेमी प्रेम का प्रतिरूप
कैसे मौन स्पंदन में डूबना लिखूँ?
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बहुत दिनों के बाद
कमला निखुर्पा
बहुत दिनों के बाद
खिलखिलाकर हँसे हम
सृष्टि हुई सतरंगी ...
दूर क्षितिज पर
चमका इंद्रधनुष...
कि हाथों में पिघलती गई आइसक्रीम ...
मीठी बूँदें जो गिरी आँचल पर
परवाह नहीं की...
चटपटी नमकीन संग
मीठे जूस की चुस्की भर
गाए भूले बिसरे गीत।
नीले अम्बर तले
बादलों के संग-संग
हरी-भरी वादियों में
डोले जीभर
झूले जीभर
बिताए कुछ यादगार पल ...
तो हुआ ये यकीं ...
ओ जिंदगी! सुनो जरा
सचमुच तुम तो हो बहुत हसीं ...
बस हमें ही जीना नहीं आया कभी...
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