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14:55, 13 जुलाई 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनीता सैनी
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<poem>
स्वयं का नाम सुना होगा सरहद ने जब
मोरनी-सी मन ही मन हर्षाई होगी।
अस्तित्व अदृश्य पानी की परत-सा पाया
भाग्य थाम अँजुली में इतराई होगी।
मंशा मानव की झलकी होगी आँखों में
आँचल लिपट बहुत रोई होगी।
आँसू पोंछें होंगे जब सैनिक ने उसके
प्रीत में बावरी दिन-रैन न सोई होगी।
क़िस्से कहे होंगे सैनिक ने घर के अपने
सीने से लगकर अश्रु दोनों ने बहाए होंगे ।
कंकड़-पत्थर संग आघात सीसे-सा पाया
मटमैले स्वप्न दोनों ने नैनों में धोए होंगे।
</poem>