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केकर अपराध? / दीपा मिश्रा

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<poem>
आठम वर्षमे
ओ बेदी पर बैसलीह
आ नौ वर्षमे
लहठी तोड़ि देल गेलैन
हुनका लेल दुनू
खेल मात्र छल
जेहिना विवाह
तेहिना वैधव्य
ओ मात्र एतबे
अंतर बुझलैथ जे
आब हम उज्जर छोड़ि
कोनो रंग नै पहिर सकैत छी
आब हम सबहक छुअल
नै खा सकैत छी
आब हमरा लेल
कोनो श्रृंगार
कोनो गहना नै
ई त' बादमे
बोध भेलैन जे
आब मात्र ओ
एकटा कलंक छलीह
समाज लेल
जेकरा ओ
बाल विधवाक
नाम दऽ देने छल
एकटा जीवित शरीर
जेकरासँ आत्मा
छीन लेने छल
हुनक कोन अपराधक
हुनका एहेन दंड
समाज देने छल
ओ कहाँ पुछलैन किनकोसँ
चुपचाप अपन
बाल गोपालमे रमल
हँसैत गबैत
विदा भऽ गेलीह
लेकिन बाबी मौसी
अहाँ सन कतेकोक
आत्माक चित्कार
आब सुनऽ पड़त समाजकेँ
कियाक त' ओकर
सुनबाक शक्तिक
आब सुधार आवश्यक
दोषी के छल
आ सजा केकरा भेटल
से यदि आबो नै फरिछायत
त' हमरा कोनो अधिकार नै
अहाँक आशीर्वादक!!!
</poem>
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