गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
घोड़ा / ज़करिया मोहम्मद / अनिल जनविजय
2 bytes removed
,
10:42, 5 अगस्त 2023
पार करता सरपट
बिना सूरमा के
दौड़ रहा
है
घोड़ा
उसकी गरदन और पीठ पर
चमक रहा है सूरज
पक्षियों ने बन्द कर ली आँखें
उसकी बेतहाशा रफ़्तार देख
लोग मंत्रमुग्ध होकर ठिठक गए
हैं
सब को लग रहा है कि घोड़ा
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits