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07:03, 11 अगस्त 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अमीता परशुराम मीता
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कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत1 बना दिया
वहशत को हमने बाइस-ए-रहमत2 बना दिया
क्या क्या मुग़ालते3 दिये दौर-ए-जदीद4 ने
नफ़रत को प्यार, प्यार को नफ़रत बना दिया
हमने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
इक मुख़्तसर5 सी रात को मुद्दत6 बना दिया
मख़्सूस7 हद पे आ गई जब बेरुख़ी तेरी
उस हद को हमने हासिल-ए-क़िस्मत8 बना दिया
1. उन्माद 2. कृपा का कारण 3. धोखे 4. आधुनिक 5. छोटी सी
6. लम्बा समय 7. ख़ास 8. भाग्य का हासिल
</poem>