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07:05, 11 अगस्त 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अमीता परशुराम मीता
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|संग्रह=
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किसी के प्यार के आगे भी हैं मुक़ाम1 कई
के हुस्ने-यार के आगे भी हैं मुक़ाम कई
गुज़र ही जायेंगे तेरे फ़िराक़2 के मौसम
हर इन्तज़ार के आगे भी हैं मक़ाम कई
जो तुमने मुझको दिया और मैंने तुमको दिया
उस इख़्तियार के आगे भी हैं मुक़ाम कई
हर एक सिम्त3 नई राह और मुस्तक़बिल4
के कू-ए-यार5 के आगे भी हैं मुक़ाम कई
वो जिस ख़ुमार की ज़द6 में गुज़ार दी हमने
उसी ख़ुमार के आगे भी हैं मुक़ाम कई
वो जिसने दिल को धड़कना सिखा दिया ‘मीता’
अब ऐसे प्यार के आगे भी हैं मुक़ाम कई
1. जगह 2. वियोग 3. दिशा 4. आने वाला कल 5. यार की गली 6. गिरफ़्त
</poem>