1,592 bytes added,
07:06, 11 अगस्त 2023 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमीता परशुराम मीता
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अगर है ज़िन्दगी इक जश्न तो नामेहरबाँ1 क्यों है?
फ़सुरदा2 रंग में ढूबी हुई हर दास्ताँ क्यों है?
तुम्हें हमसे मोहब्बत है हमें तुम से मोहब्बत है
अना का दायरा3 फिर भी हमारे दरमियाँ क्यों है?
वही सब कुछ, रज़ा उसकी, तो फिर दिल में गुमाँ क्यों है
सवालों और जवाबों से परीशाँ मेरी जाँ क्यों है?
हर इक मंज़र के पस-मंज़र4 में तेरा ही करिश्मा है
यक़ीनन ख़ालिक़-ए-कुन5 तू तो आँखों से निहाँ क्यों है ?
तुझी को है मयस्सर6 हर बुराई का दमन करना
तो नाइंसाफ़ियों के दौर में तू बेज़ुबाँ क्यों है?
1. जो कृपा नहीं कर सकता 2. उदास 3. हद 4. मंज़र के पीछे
5. दुनिया बनाने वाला 6. उपलब्ध
</poem>