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दिन का था कभी डर तो कभी रात का डर था / ज्ञान प्रकाश विवेक
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16:54, 15 नवम्बर 2008
जिन्सों को तो बाज़ार में बिकना था ज़रूरी
बाज़ार में बिकते हुए जज़्बात
का डर था
उस शख़्स ने कालीन मुझे दे तो दिया था
रक्खूँगा कहाँ, मुझको इसी बात
का डर था.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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