क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए...?
एक तकिया
कि कहीं से थका-मांदा आया और सिर टिका दिया
कोई खूँटी
कि ऊब, उदासी थकान से भरी कमीज़ उतारकर टाँग दी
या आँगन में तनी अरगनी
कि घर-भर के कपड़े लाद दिए कोई घरकि सुबह निकला और शाम लौट आया
कोई डायरी
कि जब चाहा कुछ न कुछ लिख दिया या ख़ामोश खड़ी दीवारकि जब जहाँ चाहा कील ठोक दी
या ख़ामोशी-भरी दीवार
कि जब चाहा वहाँ कील ठोक दी
कोई गेंद
कि जब तब जैसे चाहा उछाल दी
या कोई चादर
कि जब जहाँ जैसे -तैसे ओढ-बिछा ली? चुप क्यूँ ? हो!कहोन, क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए ? ......................................................................'''[[के हुँ म तिम्रा लागि ? / निर्मला पुतुल / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।]]'''
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