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11:08, 29 अगस्त 2023 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मुकुट बिहारी सरोज
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मेरा कवि ऐसे लोगों का साथ नहीं देगा कभी
जिनके हाथ किया करते हैं लाशों का व्यापार
जिन्हें भोर के आराधन से बैर है
निजी स्वार्थ के आगे दुनिया ग़ैर है
जिनके हाथों में चाँदी के जाम हैं
जिनके जरख़रीद सारे आराम हैं
जो बगिया को बारूदी बरसात दें
जो जीवन का नहीं, मरण का साथ दें
पी जाते हैं, जो किरणों की लाज को
दफ़नाते हैं, जो श्रम की आवाज़ को
जिन्हें आदमी के जीने भर से है ऐसी दुश्मनी
जैसे पावस की आँखों को पूनम का शृंगार
जिन्हें अगर प्यारी हैं तो केवल कंचनी तिजोरियाँ
जिनमें बन्दी है शिवजी के गंगाजल का प्यार
जिन्हें नहीं मालूम कि जन-बल के अधर,
जितना पीते ज़हर बने उतने अमर
ऐसी कुछ तासीर मिली है प्यार को,
फूल बना देती है हर तलवार को
जिन्हें गवारा नहीं कि दीप जला करें
सपने आँखों से हर रोज़ मिला करें
थामे बैठे हैं जो आँचल रात का
जिन्हें बहुत भय है सुख भरे प्रभात का
जिन्हें चमन के सुमन चाहिए बिकने सरे बाज़ार
जिन्हें चाहिए कलियों की तकदीरों का अधिकार
जिन्हें नहीं मालूम कि दुनिया का शोषित इंसान अब
कण - कण के घर बाँटेगा सुख सपनों का त्योहार !
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