{{KKRachnakaarParichay|रचनाकार=आसावरी काकड़े}}<poem>`मौन क्षणों का अनुवाद' शीर्षक से श्रीमती ''आसावरी काकड़े का हिंदी में पहला कविता-संग्रह है । वे मराठी की एक सुपरिचित कवयित्री हैं । मराठी में उनके तीन कवितासंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । इन संग्रहों का मराठी में अच्छा स्वागत हुआ है । इनकी कविताएँ चर्चित हुई हैं और श्रीमती काकड़े को इनके लिए पुरस्कार भी मिले हैं ।'''जन्म : 23 जनवरी 1949 जन्मस्थल : आष्टा (सांगली) महाराष्ट्र
प्रस्तुत संग्रह '''प्रकाशित पुस्तकें-''' '''गद्य की भूमिका के लिए उनके पांच किताबें-'''‘कवितेभोवतीचं अवकाश’ (लेखसंग्रह) ‘ईशावास्यम् इदं सर्वम्… : एक आकलन-प्रवास’ (दर्शन)‘अथांग’ (अनूदित उपन्यास) नेपाली लेखिका बिंद्या सुब्बा उपन्यास ‘अथाह’ का मराठी कवितासंग्रह की भूमिका अनुवाद‘आनंदी गोपाळ’- (उपन्यास- संक्षिप्त आवृत्ती) श्री. ज. जोशी जी के ‘आनंदी गोपाळ’ उपन्यास का उद्धरण यहाँ प्रस्तुत है। वें लिखती हैं कि `ऋतुचक्र की तरह आनंद, उल्लास, व्यथाकिशोरों के लिए संक्षिप्त रूपांतरण ‘मी, वेदना, भय और बेचैनी पैदा करने वाले क्षण जीवन में आतेमाझ्या डायरीतून’ (डायरी)'''कवितासंग्रह-जाते रहते हैं मराठी में दस और ये जीवन को सार्थक बनाते हैं। प्रस्तुत कवितासंग्रह हिंदी में भी कवयित्री के इसी प्रकार के भावों को शब्द मिले हैं। इन कविताओ में अवसादतीन'''‘आरसा’, मनोवेदना‘आकाश’, ‘लाहो’, ‘मी एक दर्शनबिंदू’, ‘रहाटाला पुन्हा गती दिलीय मी’, ‘स्त्री असण्याचा अर्थ’, ‘उत्तरार्ध’, ‘व्यक्त-अव्यक्ताच्या मध्यसीमेवर’, आनंद ‘भेटे नवी राई’ और उल्लास को बडे अनूठे ढंग `नव्या पर्वाच्या प्रतीक्षेत’ (मराठी) ‘मौन क्षणों का अनुवाद’ ‘इसीलिए शायद’ और ‘मेरे हिस्से की यात्रा’ (चुनिंदा मराठी कविताओं का हिंदी अनुवाद)'''चार अनूदित काव्य-संग्रह हिंदी से प्रस्तुत किया गया है। कहीं पर अकेलेपन मराठी में-''' ‘बोल माधवी’ (मूल कवि चन्द्रप्रकाश देवल ‘बोलो माधवी’)‘तरीही काही बाकी राहील’ (मूल कवि विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की चुनिंदा कविताओं का चित्रणअनुवाद)‘लम्हा लम्हा’ (मूल कवयित्रि दीप्ति नवल ‘लम्हा-लम्हा’) और‘तू लिही कविता’ (मूल दामोदर खडसे ‘तुम लिखो कविता’)'''पांच बाल-गीत संग्रह-''' ‘टिक टॉक ट्रिंग’, तो कहीं प्रतीकों के रूप में‘अनु मनु शिरू’, तो कहीं बिंबो द्वारा कविता प्रकट हुई है। एक उद्हरण यहाँ प्रस्तुत है ‘जंगल जंगल जंगलात काय?’(इसाप गाणी), ‘भिंगोर्या भिंग’ और ‘ऋतुचक्र’ई-साहित्य- 13 ई-पुस्तकें और दस ब्लॉग्ज
`धरती ने अपने ज्वालारस को एक अभेद्य कवच पहना रक्खा है इसलिए वह शांत है। अन्यथा वह भी सूरज की तरह जगमगा उठती।' यहाँ पृथ्वीरूपा नारी ने अपनी छिपी शक्ति को संचित कर रख्खा है। इसलिए वह शांत ''महत्त्वपूर्ण पुरस्कार-'''‘आरसा’ और सहनशील है ! वह युगों से पृथ्वी ‘मी एक दर्शनबिन्दू’ संग्रहों के लिए महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार‘मेरे हिस्से की तरह विषमता को सहन करती आ रही है और चुप है। यदि नारीशक्ति लावा की तरह कवचयात्रा’ महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का संत नामदेव पुरस्कार‘बोल माधवी’-मुक्त होती तो समाज और सृष्टि में साहित्य अकादेमी, नई ऊर्जा दिल्ली का प्रकाश फैल जाता। जीवन जगमगा उठता। इस तरह इस संग्रह की अनेक कविताएँ प्रतीक या अन्योक्ति अनुवाद पुरस्कार 2006‘इसीलिए शायद’- केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली का ‘हिंदीतर भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार’‘कवितेभोवतीचं अवकाश’- आचार्य अत्रे स्मृती प्रतिष्ठान, पुणे का केशवकुमार आचार्य अत्रे पुरस्कार‘ईशावास्यम् इदं सर्वम्… : एक आकलन-प्रवास’ सार्वजनिक वाचनालय, नाशिक द्वारा ग. वि. अकोलकर पुरस्कारसमग्र साहित्यिक अवदान के लिए विविध संस्थाओं के पुरस्कार- लेखिका पुरस्कार- कै. शांतादेवी शिरोळे पुरस्कार द्वारा नारी की मानसिकता को अभिव्यक्त करती हैं। ईर्ष्यामहाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे, घृणागो.नी.दांडेकर स्मृति मृण्मयी पुरस्कार, बेचैनीगोमंत विद्या निकेतन, विरहमडगाव, अकेलापनगोवा की ओर से दामोदर अच्युत कारे स्मृती गोमंतदेवी पुरस्कार, रिक्तता आदि मनोभावों को इन कविताओ में आकार मिला है।मृत्युंजय प्रतिष्ठान, पुणे की ओर से मृत्युंजयकार शिवाजीराव सावंत स्मृती साहित्य पुरस्कार 2022 आदि।
एक '''अन्य उपलब्धियाँ-'''वर्ग सातवी से एम. ए. तक के विविध वर्गों के अभ्यास-क्रमों में तथा कई महत्त्वपूर्ण संकलनों में कविताएँ संकलित। अनेक कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद। ‘मेरे हिस्से की यात्रा’ कविता -संग्रह का तमिल भाषा में वे लिखती हैं कि मुझे जीवन अनुवाद।आकाशवाणी, नई दिल्ली द्वारा आयोजित सर्वभाषी काव्यगोष्ठी में सभी सुख सुविधाएँ प्राप्त हैं। किंतु दुख इन सुखों मे छिपकर आया है। अर्थात जीवन (2002) में ऐसा कोई दुख है जो वाचाहीन हैमराठी का प्रतिनिधित्व।अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन एवं अन्य कई साहित्यिक कार्यक्रमों में सहभागिता। हिंदी साहित्य सम्मेलन, केवल अनुभव से ही वे उसको जानती हैं।प्रयाग (इलाहाबाद) द्वारा ‘सम्मेलन सम्मान’ 2004 आदि
इन कविताओ में अद्भुत व्यंजना है। नपेतुले शब्दों में अंकित ये कविताएँ पाठक के मनोदेश को किसी रहस्यमय अनुभूति में पहुँचा देती हैं। अकेले होने और बहुत पाने और फिर उसे खो देने की व्यथा इन कविताओ में जगह-जगह देखने को मिलती है। तुलना के माध्यम से ईर्ष्या, और पुत्र के संबोधन के माध्यम से अपनी इयत्ता को बड़े सामर्थ्य से कहा गया है। श्रीमती काकड़े अनेक जगहों पर बड़ी बेपर्दगी से अपनी वह बात बता देती हैं जो अनेक कवि अपनी मानसिक थाती समझकर छाती से चिपकाए रखते हैं। इसका कारण यह भी हो सकता है कि अक्सर लेखक इस प्रकार के अनुभवों को तटस्थ होकर नहीं देख पाते। वे मनोवेदना में डूबे रहते है। श्रीमती आसावरी इन अनुभवों में डूबकर किनारे पर आना चाहती हैं और आ भी जाती हैं। उनके इस प्रकार डूबने और बाहर आने का बोध और उसकी अभिव्यक्ती आदमी में समझ पैदा करती है । प्रस्तुत कवितासंग्रह आपके हाथों में है, इसे पढ़कर देखिए। आप इन नपेतुले शब्दों द्वारा न जाने कौन-से संसार में पहुँच जाएँगे। श्रीमती काकड़े हिंदी के कवितासंसार के अंतर्जगत से पूरी तरह वाकिफ नहीं है। मराठी के साहित्य का अपना अंतरंग है जो हिंदी से भिन्न है। हिंदी कविता की आक्रमक भूमिका मराठी की दलित कविता में अवश्य दिखाई देती है किंतु मराठी की मध्यमवर्गीय कविता का रूप अलग है। हिंदी की कविता गलियों, बाजारों,मैदानों मे, घरो में भटककर जीवन के अनेक रूप प्रस्तूत करती हैं। मराठी में भी यह है पर भीड़ से अलग एकांत में मनन की मुद्रा में। खैर, यहाँ हिंदी और मराठी की कविता की तुलना करना मेरा मकसद नहीं है क्योंकि मैं मराठी कविता पर कुछ कहने का अधिकारी नहीं हूँ। मेरा आशय केवल मराठी और हिंदी की समकालीन कविता के स्वभाव को अपनी समझ से अंकित करना है। हिंदी की प्रेमकविता मराठी की प्रेमकविता जैसी मुखर नहीं है। श्रीमती काकड़े ने अपनी प्रेमकविता में इसी विशेषता को व्यक्त किया है । इसका कारण शायद यही है कि वे मराठी से हिंदी में आई हैं । उनकी यह भावभूमि हिंदी की कविता को समृद्ध बनाती है। इन कवितओं की प्रतिबद्धता जीवन, समाज और व्यक्ति के अस्तित्व की पहचान से है। व्यक्ति समाज में रहता है। उसके सामाजिक संसार के साथ उसका अपने आंतरिक अनुभवों का संसार भी होता है। श्रीमती काकड़े की सामाजिक प्रतिबद्धता है नारीमुक्ति की प्रतिबद्धता और उसे वे व्यक्त करती हैं अपने जीवन में होने वाले विरोधाभासों से। श्रीमती काकड़े बड़ी विनम्रता, किंतु दृढ़ता से हिंदी जगत में आ रही हैं । यदि भाषाभेद को हटा दिया जाए तो उनका यह चौथा कवितासंग्रह है । फर्क केवल इतना है, कि तीन संग्रह मराठी में हैं और एक हिंदी में । इसलिए उनकी अभिव्यक्ति में प्रौढ़ता और परिपक्वता है । अस्तु । मेरा विश्वास है कि हिंदी साहित्य इस कवयित्री का स्वागत करेगा ।सम्पर्क : आसावरी काकड़ेसेतु डी-1/3, स्टेट बैंक नगर,कर्वे नगर, पूना - 411052टेलिफ़ोन : +91-020-2543 1377मोबाइल : +91-93718 36889ई० मेल वेबसाइट : www.asavarikakade@gmail.com/
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