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पाठशाला खुला दो , महाराजमोर जिया पढ़ने को चाहे!
आम का पेड़ ये
ठूंठे ठूँठे का ठूंठाठूँठा
काला हो गया
हमरा अंगूठाअँगूठा
यह कालिख हटा दो , महाराज
मोर जिया लिखने को चाहे
पाठशाला खुला दो , महाराजमोर जिया पढ़ने को चाहे!
’ज’ से जमींदारज़मींदार
’क’ से कारिन्दा
दोनों खा रहे
हमको जिन्दाज़िन्दा
कोई राह दिखा दो , महाराज
मोर जिया बढ़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो , महाराजमोर जिया पढ़ने को चाहे!
अगुनी भी यहाँ
ज्ञान बघारे
पोथी बांचेबाँचे
मन्तर उचारे
उनसे पिण्ड छुड़ा दो , महाराज
मोर जिया उड़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो , महाराजमोर जिया पढ़ने को चाहे!
</poem>
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