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मेरा वेतन / ताराप्रकाश जोशी

736 bytes added, 11:58, 6 अक्टूबर 2023
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मेरा वेतन ऐसे रानी
जैसे गरम तवे पे पानी
एक कसैली कैंटीन कैण्टीन से थकन उदासी का नाता है , वेतन के दिन - सा ही निश्चित पहला बिल उसका आता है , हर उधार की रीत उम्र - सी जो पाई है सो लौटानी
दफ्तर दफ़्तर से घर तक है हैं फैले कर्जदाताओं कर्ज़दाताओं के गर्म तकाजे ,
ओछी फटी हुई चादर में
एक ढकु ढकूँ तो दूजी लाजे , कर्जा क़र्ज़ा लेकर क़र्ज़ चुकाना अंगारों से आग भुजानी
फीसफ़ीस,ड्रेस,कॉपियाकॉपियाँ,किताबें आंगन आँगन में आवाजें आवाज़ें अनगिन , जरूरतों ज़रूरतों से बोझिल उगता जरूरतों ज़रूरतों में ढल जाता दिन , अस्पताल के किसी वार्ड - सी घर में सारी उम्र बितानी
'''अभी यह कविता अधूरी है'''ढली दुपहरी सी आई होदिन समेट टूटे पिछवाड़े,छाया-सी बढ़ती उधड़न सेझाँक रहे हैं अँग उघाड़े,तुझको और दिलासा देनारिसते घावों कील चुभानी ।
ये अभाव के दिन लावे - से
घुटते तेरे मेरे मन में,
अग्निगीत बनकर फैलेंगे
गाँवों - शहरों में, जन - जन में ।
जिस दिन नया सूर्य जनमेगा
तेरे जूड़े कली लगानी ।
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