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|रचनाकार=विनीत मोहन औदिच्य
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रेत पर लिखा मैंने उसका नाम एक दिन हाथ से
परंतु बहा कर ले गयीं उसे अचानक तीव्र लहरें
दूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर से
फिर से बना ले गईं अपना शिकार पीड़ा को भँवरें ।

उसने कहा तू व्यर्थ ही करता रहता अथक प्रयास
जो नश्वर है उसे अमर कदापि किया जा सकता नहीं
मैं स्वयं चाहूँ क्षरित होना छोड़कर जग की उजास
लिखकर मिटाया गया मेरा नाम उभर सकता नहीं ।

मैंने कहा नहीं है तुम्हारा नष्ट होना कदाचित् आसान
धूल मिलेंगी सारी तुच्छ वस्तुएँ अमर होगी ख्याति
तुम्हारे दुर्लभ गुणों को मेरी कविता बनायेगी महान
स्वर्ग में चमकेगी तुम्हारे नाम की अलौकिक ज्योति ।

जहाँ एक ओर मृत्यु करेगी सकल संसार का दमन
वहीं हमारा प्रेम रहेगा अमर, मिलेगा उसे नव जीवन ।।

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