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रेत पर लिखा मैंने उसका नाम एक दिन हाथ से
परंतु बहा कर ले गयीं उसे अचानक तीव्र लहरें
दूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर से
फिर से बना ले गईं अपना शिकार पीड़ा को भँवरें ।
मैंने धूप के दिनों में बारिश होते देखी मचलतीउसने कहा तू व्यर्थ ही करता रहता अथक प्रयासऔर देखा अंधकार को उजाले से जगमगातेयहाँ तक कि प्रतीत हुई झाड़ी विद्युत में बदलतीहाँ जमी हुई वर्फ को देखा चमकते व गरमातेऔर मधुर वस्तुओं में देखा है स्वाद कड़वाहट काऔर जो नश्वर है कड़वा उसका मधुर स्वाद पायाउसे अमर कदापि किया जा सकता नहींशत्रुओं को आस्वादन करते पाया प्रेम मैं स्वयं चाहूँ क्षरित होना छोड़कर जग की मुस्कुराहट काउजासअच्छा और घनिष्ठ मित्र जो मिलने तक न आया।लिखकर मिटाया गया मेरा नाम उभर सकता नहीं ।
फिर भी प्रेम की देखी हैं मैंने कई बातें विचित्रकहा नहीं है तुम्हारा नष्ट होना कदाचित् आसानजिसने भर दिये हैं मेरे घाव, नये घाव देकरधूल मिलेंगी सारी तुच्छ वस्तुएँ अमर होगी ख्यातिउसने बुझा दी है पूर्व में तुम्हारे दुर्लभ गुणों को मेरी आंतरिक अग्नि।कविता बनायेगी महानस्वर्ग में चमकेगी तुम्हारे नाम की अलौकिक ज्योति ।
जो जीवन उसने दिया था परिणामतः अंत में पवित्रजहाँ एक ओर मृत्यु करेगी सकल संसार का दमनअग्नि जो कर देती थी उन्मत्त, रही मुझसे बचकरएक बार बचा वहीं हमारा प्रेम सेरहेगा अमर, अब और अधिक जलाती प्रेमाग्नि।मिलेगा उसे नव जीवन ।। </poem>-0-