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|रचनाकार=विनीत मोहन औदिच्य
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देरी या शीघ्रता से इस संसार में हैं हम घोर लिप्त
नष्ट करते रहे हैं शक्ति खोने -पाने के सोपानों में
प्रकृति को करते रहे अनदेखा अवांछित वरदानों में
हमने कर लिया स्वयं को घिनौनी वासनाओं से तृप्त।
देखो कर देता जलधि अनावृत वक्ष, राकेश निमित्त
घंटों मचाती रहेंगी शोर, चंचल हवायें बियावानों में
सुप्तावस्था के प्रसूनों जैसे, एकत्रित होंगे बागानों में
इन मधुरिम क्षणों से कदाचित् हम, सदा रहे हैं निर्लिप्त।

नहीं करती प्रकृति हमें अपनी ओर आकर्षित लेशमात्र
मैं छोड़ धर्म पुरातनपंथी मूर्तिपूजक चाहूँगा बनना
और खड़ा रहूँगा अकेले ही सुखद मैदान में मात्र।

देखूँगा सुन्दर दृश्य नहीं चाहूँ एकाकी कभी रहना
*प्रोटियस को सागर से उठते देखने का बनूँगा पात्र
चाहूँगा *ट्राइटन का सुसज्जित बिगुल सतत सुनना।।

*****

*प्रोटियस - ग्रीक पौराणिक गाथा में वर्णित एक भविष्य वक्ता समुद्री देवता जो भविष्य देखने और रूप परिवर्तित करने में सक्षम था और सदैव सच कहता था।
*ट्राइटन - ग्रीक पौराणिक गाथा में वर्णित एक समुद्री देवता जो अर्ध मत्स्य और अर्ध पुरुष रूप में शंखनाद कर समुद्र में गर्जना उत्पन्न करता था
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