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14 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आन्द्रे वैल्ते
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
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<poem>
काला पागलपन सफ़ेद जादू
खुले हाथों में दौड़ता रक्त
धु्न्ध के पर्दे पर
बहता रक्त
स्वयं को दृष्टि देता
कनपटी से गर्दन तक
रोशनी से आहत
आत्मा का दूत
जो तलाशता
रोशनी
प्रेमी,
त्यागना चाहता
अपनी आत्मा
अपनी छाया
अपना नाम
रात डूबने
और
भोर से पहले
०
सफ़ेद पागलपन काला जादू
चेहरे पर ठहरा पानी
एक अदृश्य परछाई में
बाढ़ से अलग
पावन जल
और समय से बाहर
बारिश का पानी
०
खोई भ्रान्ति का एक रखवाला
समाता
अतल गहराइयों में
प्रेमी,
पाता अपनी सांस के नीचे
अपने होठों से नपी
एक वशीभूत देह
चीख़ और सोने से पहले
०
विस्मृति का पागलपन सफ़ेद जादू
प्रार्थना गीत की लपटों को
मिटाती आग
अकारण पत्थर से उठी
क्षण भर की
वह रहस्यमई आग
एक दूरस्थ भय से
निर्वासित
निश्चिन्त करती अकेलेपन को
सूर्य की आर्द्रता में
अन्धाधुन्ध जलता प्रेमी
खोए हुए अवलोको में
पुन: पाता दृष्टि
०
सफ़ेद पागलपन विस्मृति का जादू
शिराओं को चीरती हवा
आत्महत्या से अधिक उन्मादित
आकाश के अन्तरालों की हवा
छलनी हुए
सिरों की हवा
आसमान के पार छिटकते
रंगों के प्रिज्म
अनन्त सौन्दर्य में
उल्लसित प्रेमी
आश्रित
अपनी स्मृति पर
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : योजना रावत'''
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