697 bytes added,
17 जनवरी {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शिवप्रसाद जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इन दिनों
यथार्थ सारे घुल-मिल गए अतियथार्थो के निर्माण में
जैसे बहुमत में घुल-मिल गए बहुत सारे बहुमत
संस्कृति घुल-मिल गई है वर्चस्व में
तुम्हारे अपने यथार्थ का हश्र भी वहीं कहीं होगा
ख़ून में या कराह में ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader