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दहलीज़ पर बारिश / रसूल हम्ज़ातव / श्रीविलास सिंह
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19 जनवरी
<poem>
होती है दहलीज़ पर बरसात, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,
चोटियों पर गिरती है बर्फ़, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ
तुम्हारा ।
तुम्हारा।
भोर का निरभ्र आकाश, चकित मैं, स्वप्न देखता हूँ तुम्हारा,
अनिल जनविजय
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