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<poem>
उलझी सी कहानी है किरदार भी छुपकर है
तरतीब-ए-अनासिर में तरतीब कहाँ पर है

क्या रेत कहाँ पानी, डूबा हूँ मैं होने में
साहिल पे घरौन्दे हैं, बाज़ू में समन्दर है

ख़ल्वत भी कहाँ किसको रहने दे अकेले में
इक भीड़ हमेशा जो मुझ एक के अन्दर है

इदराक की खिड़की से बाहर भी ज़रा देखो
बातिन के धुँधलके में औहाम का मन्ज़र है

हर शख़्स हक़ीक़त है, इक शख़्स कहानी है
दुनिया को कहानी की दरकार ही अक्सर है

चलिए कि नदी सूखी, पत्थर के सनमख़ाने
चलिए कि इदारों में शैतान का दफ़्तर है

बाज़ार फ़क़ीरी का, सरकार अमीरी की
जम्हूर फ़रेबी का, नैरंग मुक़र्रर है

'''शब्दार्थ'''
अनासिर – तत्त्व, पंचभूत(elements); साहिल – किनारा (shore); ख़ल्वत – एकान्त (solitude) ; इदराक – बोध, समझ-बूझ (perception); बातिन – अन्तर्मन (inner self); औहाम – भ्रान्तियाँ (illusions); मन्ज़र – view (elements); सनमख़ाने – मूर्तिघर, मन्दिर (temples); इदारा – संस्थान (institution); जम्हूर – जनता (people); नैरंग – तिलिस्म (deception, fascination)
</poem>
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